“शास्त्र” क्या है? ..एक गृहस्थ के शब्दों में …
May 9, 2018शास्त्र किसी एक ग्रन्थ का नाम नहीं है, वेद और वेद का अनुसरण करने वाले सारे दिव्य और आर्ष ग्रन्थों को शास्त्र कहा जाता है |
देवता द्वारा प्रदत्त ग्रन्थ दिव्य हैं और ऋषियों द्वारा रचित ग्रन्थ आर्ष हैं |
वेदों के अलावा अन्य ग्रंथों में दुष्टों ने कहीं-कहीं प्रक्षिप्त अंश कलियुग में जोड़ दिए, जिनकी पहचान करके शास्त्र का सही अर्थ लगाने के लिए शास्त्रार्थ होते थे | अब शास्त्रार्थ होते भी हैं तो व्यक्तिगत अहंकार के लिए |
सनातन परम्परा यही है कि वेद अन्तिम प्रमाण हैं | जो बात स्पष्ट तौर पर वेद में नहीं हैं उनके लिए वेद-सम्मत अन्य दिव्य एवं आर्ष ग्रंथों को अन्तिम प्रमाण माना जाता है | मनुष्य की तर्कबुद्धि और देखी-सुनी बातों को अन्तिम प्रमाण नहीं माना जाता क्योंकि आदि शंकराचार्य के अनुसार वेद से उन बातों का ज्ञान होता है जो किसी अन्य माध्यम से मनुष्य जान ही नहीं सकता, जैसे कि देवता, आत्मा, परमात्मा, पुनर्जन्म, परलोक, कर्मफल, पुण्य, पाप, आदि, और यही बातें सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं |
किन्तु जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं उन बातों की जानकारी कलियुगी शिक्षा प्रणाली नहीं देती | हिन्दू बच्चों को बताया भी नहीं जाता कि शास्त्र कहते किसे हैं, जबकि हर मुसलमान और ईसाई बच्चे को सिखाया जाता है कि उनका शास्त्र क्या है |
“वेद” शब्द का अर्थ ही है सच्चा “ज्ञान” | मनुष्य वास्तव में कौन है, देह या आत्मा, और मनुष्य को अपने वास्तविक कल्याण के लिए कैसे जीना चाहिए इसका ज्ञान ही वेद है | यदि इसी बात का ज्ञान न हो तो शेष सबकुछ पढ़ना व्यर्थ है | तभी तो कहा गया कि पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ…..
केवल पोथी पढने से वेद का ज्ञान नहीं होता | वेद मैं हूँ, वेद आप हैं, और चारों तरफ जो कुछ भी वास्तव में है वह सबकुछ वेद है, शास्त्र है, शेष जो कुछ भी दिखता है वह माया है, पञ्च- इन्द्रियों को प्रतीत होने वाला पञ्च-भौतिक प्र-पञ्च है | सत्य एक है, वह सब जगह है, हर जीव में भी है और बाहर भी है | अतः हर किसी प्राणी तथा वस्तु को आत्मवत देखने से ही वेद को समझने का सामर्थ्य जागता है | अतः ढाई आखर प्रेम ही असली कुंजी है वेद का ताला खोलने की |
ईश्वर के सम आपका अर्थ (प्रयोजन) हो जाय तभी सामर्थ्य प्राप्त होता है, आप अपने स्वामी बनते हैं | ईश्वर का प्रयोजन है सभी प्राणियों का कल्याण | निरीच्छ ब्रह्म में जब प्राणियों का कल्याण करने की ईच्छा हो तो ब्रह्म के उस स्वरुप को ईश्वर कहते हैं |
व्यक्तिगत जीवन, समाज तथा सम्पूर्ण सृष्टि का नियमन और शासन जिसके आधार पर हो उसे शास्त्र कहते हैं | शास्त्र का रचयिता कोई नहीं, यह सनातन है | महाप्रलय होने पर जीव नहीं रहते, शास्त्र रहता है |
मनुष्य के जीवन का नियमन शास्त्र के जिस भाग द्वारा किया जाय उसे मानव-धर्म-शास्त्र कहा जाता है, इसी का संक्षिप्त नाम है मनुस्मृति | संसार के सभी मनुष्यों के आदि पूर्वज का नाम है मनु | जो मनुस्मृति को नहीं मानते उन्हें अपने को मनुष्य कहने का कोई अधिकार नहीं | मानवतावाद का मूलाधार है मनुस्मृति |
हिन्दुओं को संस्कार से म्लेच्छ बनाने का षड्यन्त्र जोरों पर है | सात सौ वर्षों के इस्लामी राज में शारीरिक क्षति पँहुची, ईसाई राज में हिन्दुओं को मानसिक क्षति पंहुचायी जा रही है – आज भी |
व्यक्ति, समाज और सृष्टि का पूरा विधान जिसपर टिके उस सनातन संविधान को “शास्त्र” अथवा “धर्मशास्त्र” कहा जाता है | मनुष्य स्वयं को भी नहीं जानता, सृष्टि के सं-विधान को कैसे जान या बना सकता है ? म्लेच्छों से आयातित अन्धी देवी के अन्धे अनुचरों का अन्धा विधान अपनी पूर्वजा को अपमानित करना “अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता” मानता है !
घर में बैठकर ऋग्वेद या यजुर्वेद पढ़ने से बेहतर “शास्त्र” है सनातनियों को अपमानित करने वालों को “शास्त्र” पढ़ाया जाय | सनातनी ही नहीं बचेंगे तो सनातन धर्म किस काम का ?
साम-दाम से जो न सुधरे उनके लिए दण्ड-भेद है, यह शास्त्र की आज्ञा है |
शास्त्र पढ़ने की नहीं, जीने की चीज है | शास्त्र के अनुसार जीने का प्रयास करेंगे तभी शास्त्र की पोथियों का असली अर्थ खुलेगा |
हिंसा पाप है | आत्मरक्षा पुण्य है | सनातनियों में परस्पर एकता हो जाय तो लड़ाई की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी, इतनी संख्या है हमारी | भारत सुधर जाय तो फिर अफ्रीका से अमरीका तक के लोगों को उनका सही इतिहास पढ़ाएंगे | जो इतिहास नहीं सीखते उनको इतिहास ही “सिखा” देता है |