कोणार्क सूर्य मंदिर

कोणार्क सूर्य मंदिर

May 9, 2018 0 By Ajay

कोणार्क का प्रसिद्ध सूर्य मंदिर उड़ीसा के पुरी जिले के कोणार्क नामक कस्बे में है।
कोणार्क कोण और अर्क शब्दों के मेल से बना है। अर्क का अर्थ है सूर्य, जबकि कोण से अभिप्राय कोने से है। कोणार्क का सूर्य मंदिर पुरी के उत्तर पूर्वी किनारे पर समुद्र तट के समीप निर्मित है। यह मंदिर प्राचीन उडि़या स्थापत्य कला का बेजोड़ उदाहरण है। सूर्य मंदिर की रचना इस तरह से की गई है कि यह सभी को आकर्षित करती है। सूर्य को ऊर्जा, जीवन और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। सूर्य देवता की सभी संस्कृतियों में पूजा की जाती रही है। इस मंदिर में मानवीय आकार में मूर्ति है, जो अन्य कहीं नहीं है। इस मंदिर को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि अपने सात घोड़े वाले रथ पर विराजमान सूर्य देव अभी-अभी कहीं प्रस्थान करने वाले हैं। यह मूर्ति सूर्य मंदिर की सबसे भव्य मूतियों में से एक है। सूर्य की चार पत्नियां रजनी, निक्षुभा, छाया और सुवर्चसा मूर्ति के दोनों तरफ विद्यमान हैं।
सूर्य की मूर्ति के चरणों के पास ही रथ का सारथी अरुण भी उपस्थित है। उल्लेखनीय है कि सूर्य मंदिर को गंग वंश के राजा नरसिंह देव प्रथम ने लगभग 1278 ई. में बनवाया था। कहा जाता है कि यह मंदिर अपनी पूर्व निर्धारित अभिकल्पना के आधार पर नहीं बनाया जा सका, क्योंकि मंदिर के भारी गुंबद के हिसाब से इसकी नींव नहीं बनी थी।
गौरतलब है कि स्थान चयन से लेकर मंदिर निर्माण सामग्री की व्यवस्था और मूर्तियों के निर्माण के लिए बड़ी योजना को रूप दिया गया। चूंकि उस काल में निर्माण वास्तुशास्त्र के आधार पर ही होता था, इसलिए मंदिर निर्माण में भूमि से लेकर स्थान और दिन चयन में निर्धारित नियमों का पालन किया गया।
दरअसल इसके निर्माण में 1200 कुशल शिल्पियों ने 12 साल तक लगातार काम किया। इस दौरान शिल्पियों को यह निर्देश दिया गया था कि एक बार निर्माण आरंभ होने पर वे अन्यत्र नहीं जा सकेंगे। निर्माण स्थल में निर्माण योग्य पत्थरों का अभाव था, इसलिए संभवतः निर्माण सामग्री नदी मार्ग से यहां लाई गई और इसे मंदिर के निकट ही तराशा गया। पत्थरों को स्थिरता प्रदान करने के लिए जंग रहित लोहे के कब्जों का प्रयोग किया गया। इसमें पत्थरों को इस प्रकार से तराशा गया कि वे इस प्रकार से बैठें कि जोड़ों का पता न चले।
पुराविद एवं वास्तुकार मंदिर की संरचना, मूर्तिशिल्प और पत्थरों पर उकेरी आकृतियों को वैज्ञानिक तकनीकी एवं तार्किक कसौटी पर कसने के बाद तथ्यों को दुनिया के सामने रखते रहे हैं। कोणार्क उड़ीसा की प्राचीन वास्तुशैली का विशिष्ट मंदिर है।
इसमें मुख्य मंदिर महामंडप, रंगशाला और सटा भोगमंडप होते थे। कोणार्क मंदिर की वास्तुशैली में थोड़ी भिन्नता है।
पूर्व में स्थित प्रवेश द्वार के बाद नाट्यमंडप है। द्वार पर दोनों ओर दो विशालकाय सिंह एक हाथी को दबोचे हैं। मंदिर का भोगमंडप मंदिर से पृथक निर्मित है।
मुख्य सूर्य मंदिर में महामंडप और मुख्य मंदिर जुड़े थे, जबकि भोगमंडप रथ से पृथक था। मंदिर को रथ का स्वरूप देने के लिए मंदिर के आधार पर दोनों ओर एक जैसे पत्थर के 24 पहिए बनाए गए। पहियों को खींचने के लिए 7 घोड़े बनाए गए। इन पहियों का व्यास तीन मीटर है। बाहरी दीवार पर लगे पत्थरों पर विभिन्न आकृतियों को इस प्रकार से उकेरा गया कि वे जीवंत लगें।