तप-त्याग का अधिक मास
May 9, 2018मलमास में सूर्य धनु राशि का होता है। ऐसे में सूर्य का बल वर को प्राप्त नहीं होता। वर को सूर्य का बल और वधु को बृहस्पति का बल होने के साथ ही दोनों को चंद्रमा का बल होने से ही विवाह के योग बनते हैं। इस पर ही विवाह की तिथि निर्धारित होती है। 16 मई को मलमास शुरू हो जाने से विवाह-संस्कारों पर एक माह के लिए रोक रहेगी…
भारतीय कालगणना की एक प्रमुख विशेषता प्रत्येक तीन वर्षों के बाद पड़ने वाला मलमास है। इसे अधिकमास और पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। इस मास का धार्मिक दृष्टि से तो महत्त्व है ही, यह मास हमारे पूर्वजों की उत्कृष्ट ज्योतिषीय गणना का भी परिचायक है।
भारतीय कालगणना में शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष मिलाकर प्रत्येक महीने में तीस तिथियां और बारह महीने के वर्ष में 360 तिथियां होती हैं। क्षय तिथियों की वजह से भारतीय वर्ष में लगभग 354 दिन ही होते हैं। दूसरी तरह हमें पता ही है कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर 366 दिन और लगभग 6 घंटे में अपनी परिक्रमा पूरी करती है, यही परिक्रमा काल ही वर्ष कहलाता है।
इस तरह प्रत्येक भारतीय वर्ष और पृथ्वी की परिक्रमा अवधि में 11 दिनों का अंतर आ जाता है।
हमारे पूर्वजों ने प्रत्येक तीन वर्ष बाद अधिकमास की व्यवस्था कर अपनी वार्षिक कालगणना को पृथ्वी की परिक्रमा अवधि के समतुल्य बनाए रखा है। इस अधिकमास में धार्मिक कृत्यों के संपादन को विशेष महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
अधिकमास में किए गए धार्मिक कार्यों का किसी भी अन्य माह में किए गए पूजा-पाठ से 10 गुना अधिक फल मिलता है। हिंदू धर्म के अनुसार प्रत्येक जीव पंचमहाभूतों से मिलकर बना है। इन पंचमहाभूतों में जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी सम्मिलित हैं। अपनी प्रकृति के अनुरूप ही ये पांचों तत्त्व प्रत्येक जीव की प्रकृति न्यूनाधिक रूप से निश्चित करते हैं। अधिकमास में समस्त धार्मिक कृत्यों, चिंतन-मनन, ध्यान, योग आदि के माध्यम से साधक अपने शरीर में समाहित इन पांचों तत्त्वों में संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। इस पूरे मास में अपने धार्मिक और आध्यात्मिक प्रयासों से प्रत्येक व्यक्ति अपनी भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति और निर्मलता के लिए उद्यत होता है। इस तरह अधिकमास के दौरान किए गए प्रयासों से व्यक्ति हर तीन साल में स्वयं को बाहर से स्वच्छ कर परम निर्मलता को प्राप्त कर नई ऊर्जा से भर जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इस दौरान किए गए प्रयासों से समस्त कुंडली दोषों का भी निराकरण हो जाता है।
वशिष्ठ सिद्धांत के अनुसार भारतीय हिंदू कैलेंडर सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है। अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घंटे के अंतर से आता है। इसका प्राकट्य सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है। भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है।
हिंदू धर्म में अधिकमास के दौरान सभी पवित्र कर्म वर्जित माने गए हैं। माना जाता है कि अतिरिक्त होने के कारण यह मास मलिन होता है। इसलिए इस मास के दौरान हिंदू धर्म के विशिष्ट व्यक्तिगत संस्कार जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह और सामान्य धार्मिक संस्कार जैसे गृहप्रवेश, नई बहुमूल्य वस्तुओं की खरीददारी आदि आम तौर पर नहीं किए जाते हैं। मलिन मानने के कारण ही इस मास का नाम मलमास पड़ गया है।
अधिकमास के अधिपति स्वामी भगवान विष्णु माने जाते हैं। पुरुषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है। इसीलिए अधिकमास को पुरुषोत्तम मास के नाम से भी पुकारा जाता है। आमतौर पर अधिकमास में हिंदू श्रद्धालु व्रत-उपवास, पूजा- पाठ, ध्यान, भजन, कीर्तन, मनन को अपनी जीवनचर्या बनाते हैं। पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस मास के दौरान यज्ञ- हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से फलदायी होता है।