मोहन दास करम चन्द्र गांधी एक नजर में ………. -विशाल अग्रवाल

मोहन दास करम चन्द्र गांधी एक नजर में ………. -विशाल अग्रवाल

October 2, 2018 0 By Ajay

बचपन से हम लोगों के सामने गाँधी जी की एक ऐसी छवि प्रस्तुत की गयी कि इस देश को आज़ादी मिली तो उसका श्रेय केवल और केवल उन्हें और उनके समर्थकों विशेषकर नेहरु परिवार को जाता है| जागृति फिल्म का गाना ‘दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल. साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’ इतना सुनाया जाता था कि यही मानते थे हम कि देश की आज़ादी के लिए जो कुछ किया, गाँधी जी या उनके ही लोगों ने किया|

थोडा बड़े हुए तो मन में सवाल आने लगा कि अगर आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल मिल गयी तो ये भगतसिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, मास्टर सूर्यसेन, मदनलाल धींगरा, ऊधम सिंह, वीर सावरकर, सुनीति घोष, शचीन्द्रनाथ सान्याल, बारीन्द्र कुमार घोष और नेता जी बोस जैसे अनगिनत नाम अनाम क्रान्तिधर्मा क्या करते थे और इनका आज़ादी की लड़ाई में क्या योगदान| पर इन सवालों का जवाब कहीं से भी नहीं मिलता था क्योंकि इस देश में गाँधी जी के बारे में कोई प्रश्न खड़ा करना मतलब घोरतम पाप| शिक्षक या तो सरकारी नौकरी के चलते डरते थे या उन्हें खुद ही विषय स्पष्ट नहीं था इसलिए चिल्ला कर या झिड़क कर चुप करा देना ही उन्हें सबसे आसान रास्ता लगता था|

पर इन झिड़कियों, बौखलाहट या गुस्से के डर से सवाल ख़त्म नहीं हुए बल्कि बढ़ते ही चले गए कि क्यों गाँधी जी ने भगतसिंह को नहीं बचाया, क्यों उन्होंने सुभाष बाबू को कांग्रेस छोड़ने पर मजबूर किया, क्यों उन्होंने स्वामी श्रद्धानंद के हत्यारे को माफ़ी दिलवाई, क्यों उन्होंने खिलाफत आन्दोलन को अंग्रेजों के खिलाफ बताकर हिन्दुओं को बरगलाया, क्यों उन्होंने कट्टर मुस्लिम नेताओं को संरक्षण दिया, क्यों उन्होंने सरदार पटेल की कीमत पर नेहरु को आगे बढाया, क्यों उन्होंने अपने हर आन्दोलन को अधबीच ख़त्म कर दिया, क्यों उन्होंने क्रांतिकारियों के लिए उपेक्षा भाव रखा, क्यों उन्होंने केरल के मालाबार में हिन्दुओं के भीषण नरसंहार को मोपला विद्रोह कह कर मुस्लिमों को बचाया, क्यों उन्होंने हर बार हिन्दुओं को ही पीड़ित पक्ष बने रहने पर मजबूर किया, क्यों उन्होंने पाकिस्तान को ५५ करोड़ रूपये देने की जिद की, क्यों उन्होंने ठण्ड में ठिठुरते हिन्दुओं को खाली पड़ी मस्जिदों से निकालने के लिए सरदार पटेल को सख्त निर्देश दिए|

ये क्यों समय के साथ बढ़ते ही गए और साथ ही साथ बढ़ता गया बड़े जतन से बनाए गए गाँधी जी के आभामंडल और उनकी भगवान टाइप उस छवि के प्रति विद्रोह जिसके विरुद्ध कोई प्रश्न खड़ा करने की सख्त मनाही थी| नतीजा ये निकला कि आज एक बड़ा वर्ग मेरी ही तरह गाँधीजी को आज़ादी की लड़ाई का एकमात्र नायक नहीं मानता, उनके कार्यों के सम्बन्ध में जम कर प्रश्न उठाता है और उनके बारे में बनाये गए आभामंडल को अस्वीकार करता है। हालांकि मैं उन्हें गालियाँ देने और उनके लिए अभद्र भाषा का प्रयोग करने का समर्थन नहीं करता और दो तीन बातों के लिए उनका सम्मान भी करता हूँ| एक, कुछ लोगों और वर्गों तक सीमित आज़ादी की लड़ाई को उन्होंने सच्चे अर्थों में एक जनांदोलन बनाया; दूसरा, सब कुछ पा लेने की संभावनाओं के बावजूद अपने परिवार के लिए उन्होंने कुछ नहीं किया और तीसरा, अपनी कमियों को अपनी आत्मकथा में बेबाकी से स्वीकार किया जैसा कर पाने की हिम्मत कम ही लोगों में होती है| पर मेरे लिए इससे अधिक वो कुछ नहीं| हाँ, इतना अब और स्वीकार करना पड़ रहा है कि गाँधी एक ब्रांड तो हैं ही, एक इंटरनेशनल ब्रांड, जिनके नाम का सहारा हर सत्ताधीश को लेना पड़ता है इस देश में अपनी छवि चमकाने के लिए, फिर वो चाहे नागपुर की पाठशाला से ही क्यों ना निकला हो|

अगर प्रारंभ से ही हमारे समक्ष उनको भगवान बना कर प्रस्तुत ना किया गया होता तो संभवतः आज वो हमसे और अधिक सम्मान पा रहे होते| उनके नाम को भुना भुना कर सत्तासुख भोगने वाले उनके शिष्यों ने उनका सम्मान जबरदस्ती करवाना चाहा और परिणाम ये हुआ कि थोडा समझदार होते ही मन विद्रोह कर गया जो आज तक जारी है| ताज्जुब ये कि हमें फासीवादी, तानाशाही प्रवृत्ति का और हिटलर की मानसिकता कहने वाले ये लोग खुद इस विचार के हैं कि आपको गाँधी का सम्मान करना ही होगा और अगर आप उनके बारे में कोई प्रश्न खड़ा करते हैं तो आप इस देश में रहने के अधिकारी नहीं, आप पर मुकदमा चलना चाहिए, आप को सबक सिखाया जायेगा आदि आदि। कोई इनसे पूछे कि क्या इनसे कभी कहा गया कि चूँकि आप डाक्टर हेडगेवार या वीर सावरकर का सम्मान नहीं करते इसलिए आप गलत हैं या चूँकि आप बीना दास और सुशीला दीदी को नहीं जानते इसलिए आप इस देश में रहने के काबिल नहीं| तो गाँधी जी को लेकर ही ये जिद क्यों?

आधुनिक युग के चिराग-विशाल अग्रवाल