वैदिक कालीन प्रमाणित इतिहास का विश्लेषण – भाग 1

वैदिक कालीन प्रमाणित इतिहास का विश्लेषण – भाग 1

May 16, 2018 0 By Ajay

महाभारत में प्राग्ज्योतिष (असम), किंपुरुष (नेपाल), त्रिविष्टप (तिब्बत), हरिवर्ष (चीन), कश्मीर, अभिसार (राजौरी), दार्द, हूण हुंजा, अम्बिस्ट आम्ब, पख्तू, कैकेय, गंधार, कम्बोज, वाल्हीक बलख, शिवि शिवस्थान-सीस्टान-सारा बलूच क्षेत्र, सिंध, सौवीर सौराष्ट्र समेत सिंध का निचला क्षेत्र दंडक महाराष्ट्र सुरभिपट्टन मैसूर, चोल, आंध्र, कलिंग तथा सिंहल सहित लगभग 200 जनपद वर्णित हैं, जो कि पूर्णतया आर्य थे या आर्य संस्कृति व भाषा से प्रभावित थे।
इनमें से आभीर, अहीर, तंवर, कंबोज, यवन, शिना, काक, पणि, चुलूक चालुक्य, सरोस्ट सरोटे, कक्कड़, खोखर, चिन्धा चिन्धड़, समेरा, कोकन, जांगल, शक, पुण्ड्र, ओड्र, मालव, क्षुद्रक, योधेय जोहिया, शूर, तक्षक व लोहड़ आदि आर्य खापें विशेष उल्लेखनीय हैं।

श्रीराम के काल यानि लगभग 5114 ईसा पूर्व में (★ यह काल गणना अनुमानित है, इस पर बहस ना करें) नौ प्रमुख महाजनपद थे जिसके अंतर्गत उप जनपद होते थे।

ये नौ इस प्रकार हैं-

1.मगध,

2.अंग (बिहार),

3.अवन्ति (उज्जैन),

4.अनूप (नर्मदा तट पर महिष्मती),

5.सूरसेन (मथुरा),

6.धनीप (राजस्थान),

7.पांडय (तमिल),

8. विन्ध्य (मध्यप्रदेश) तथा

9.मलय (मलाबार से मलेशिया तक)

★ इनके अंतर्गत 16 उप महाजनपदों के नाम :

1. कुरु,

2. पंचाल,

3. शूरसेन,

4. वत्स,

5. कोशल,

6. मल्ल,

7. काशी,

8. अंग,

9. मगध,

10. वृज्जि,

11. चे‍दि,

12. मत्स्य,

13. अश्मक,

14. अवंति,

15. गांधार तथा

16. कंबोज,

उपरोक्त 16 उप महाजनपदों के अंतर्गत छोटे जनपद भी होते थे और गांधार प्रदेश भारत के पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक था, आधुनिक ‘कंधहार या कंधार‘ इस क्षेत्र से कुछ दक्षिण में स्थित था,, अंगुत्तर निकाय के अनुसार बुद्ध तथा पूर्व-बुद्धकाल में गंधार उत्तरी भारत के सोलह जनपदों में परिगणित था, सिकन्दर के भारत पर आक्रमण के समय गांधार में कई छोटी-छोटी रियासतें थीं, जैसे अभिसार, तक्षशिला आदि।

मौर्य साम्राज्य में संपूर्ण गांधार देश सम्मिलित था, 7वीं शताब्दी में जब अरबी आक्रांता मोहम्मद बिन कासिम का सिंध और बलूचिस्तान पर आक्रमण हुआ तब गंधार के अनेक भागों में बौद्ध धर्म काफी उन्नत स्थित में था और यहां हिन्दू राजशाही के राजा राज करते थे , 8वीं – 9वीं सदी में तुर्क मुस्लिम खलीफाओं के अभियानों के चलते धीरे-धीरे मजबूरन यह देशज प्रांत उन्हीं के राजनीतिक तथा धार्मिक प्रभाव में आ गया और 870 ई. में अरब सेनापति याकूब इलीस ने इसे अपने अधिकार में कर लिया,तब पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) तथा तक्षशिला इसकी राजधानी थी।

पुराणों (मत्स्य 48/6; वायु 99,9) में गांधार / कदंहार नरेशों को द्रुहु का वंशज बताया गया है ,, ययाति के पांच पुत्रों में से एक द्रुहु था, ययाति के प्रमुख 5 पुत्र थे –

1.पुरु,

2.यदु,

3.तुर्वस,

4.अनु

5. द्रुहु

इन्हें वेदों में पंचनंद कहा गया है, 7,200 ईसा पूर्व अर्थात आज से 9,200 वर्ष पूर्व ययाति के इन पांचों पुत्रों का संपूर्ण धरती पर राज था, पांचों पुत्रों ने अपने- अपने नाम से राजवंशों की स्थापना की!

★ यदु से यादव,

तुर्वसु से यवन,

द्रुहु से भोज,

अनु से मलेच्छ और पुरु से पौरव वंश की स्थापना हुए।

ययाति ने दक्षिण-पूर्व दिशा में तुर्वसु को (पंजाब से उत्तरप्रदेश तक), पश्चिम में द्रुह्मु को, दक्षिण में यदु को (आज का सिन्ध-गुजरात प्रांत) और उत्तर में अनु को मांडलिक पद पर नियुक्त किया तथा पुरु को संपूर्ण भूमंडल के राज्य पर अभिषिक्त कर स्वयं वन को चले गए।

द्रुह्मु का वंश : द्रुह्मु के वंश में राजा गांधार हुए ये आर्यावर्त के मध्य में रहते थे। बाद में द्रुहुओं? को इक्ष्वाकु कुल के राजा मंधातरी ने मध्य एशिया की ओर खदेड़ दिया, पुराणों में द्रुह्यु राजा प्रचेतस के बाद द्रुह्युओं का कोई उल्लेख नहीं मिलता लेकिन प्रचेतस के बारे में लिखा है कि उनके 100 बेटे अफगानिस्तान से उत्तर जाकर बस गए और ‘म्लेच्छ’ कहलाए यानि मध्य एशियाई – यूरेशियाई ..??

ययाति के पुत्र द्रुह्यु से बभ्रु का जन्म हुआ। बभ्रु का सेतु, सेतु का आरब्ध, आरब्ध का गांधार, गांधार का धर्म, धर्म का धृत, धृत का दुर्मना और दुर्मना का पुत्र प्रचेता हुआ।
प्रचेता के 100 पुत्र हुए, ये उत्तर दिशा में म्लेच्छों के राजा हुए।

▶ कुछ इतिहासकारों अनुसार यदु और तुर्वस को दास कहा जाता था हालांकि यदु और तुर्वस के विषय में ऐसा माना जाता था कि इंद्र उन्हें बाद में लाए थे, लेकिन यह सभी आर्य ही थे।

☞ तो क्या मुगल, कुरैश और अरब भी ययाति वंशज और यादव ही हैं, यानि प्रमाणित इतिहास से यादव तो मूलनिवासी कतई नहीं और ना ही अनार्य ..??

क्या यदुवंशीय यादवों के मुस्लिम प्रेम का सारा कारण यादव इतिहास और वेद पुराणों में ही निहित है..यानि यादव कतई ओबीसी नहीं..??